मित्रो इस भीषण महामारी को देखते हुए आपको यह लग रहा होगा की अब यही कलयुग का अंत है, परंतू ये सत्य नही है, हम आपको बताएंगे की कलयुग कितना बाकी है, कलयुग का आरम्भ कब हुआ और राजा परीक्षित की कहानी।
हिंदू शास्त्र में सूर्य वर्णन के अनुसार वास्तव में कलयुग को आरंभ हुए अभी ज्यादा अरसा नही हुआ है, बालकि ये तो कलयुग का आरंभ और इसका अंत होने में अभी काफी समय बाकी है। कलयुग का आरंभ केसे हुआ, यदि इस वर्णन हेतु हम अपने हिंदू शास्त्रों और पुराणों, महाभारत, मनुस्मृति, विष्णुस्मृति और सूर्य सिद्धांत जैसे ग्रंथो के पन्ने पलटे तो हमे कलयुग काल के भयामय प्रभाव के बारे में पता चलता है और ऐसी बोहोत सी गाथाएं सामने आती है जो की कलयुग के आरंभ से जुड़ी है, इनमेसे सबसे प्रसिद्ध गाथा के अनुसार कलयुग का पृथ्वी पर आगमन राजा परीक्षित की एक भूल से जुड़ी है।
आइए जानते है है की वो कोन सी भूल थी जिसके परिणाम स्वरूप कलयुग न सिर्फ धरती पर आया बल्कि यही का होकर रह गया।
राजा परीक्षित कोन थे ?
तो आइए जानते है उस संदर्भ के बारे में जो कलयुग के आरंभ का सबसे पछलित संदर्भ है, जी हां, राजा परीक्षित की बात जो हमने पोस्ट के आरंभ में की थी और जिसके फल स्वरूप राजा परिचित को पृथ्वी पर कलयुग के डेरा जमाने का जिम्मेदार ठहराया गया है। क्या थी वो भूल आईए जानते है पोस्ट के इस भाग में, क्या आपने कभी सोचा है, ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिसके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा। महाभारत की समाप्ति के साथ द्वापर युग की समाप्ति के दिन भी समीप आ रहे थे, तब धरती पर अपनी भूमिका पूरी कर रहे भगवान श्री कृष्ण बैकुंठ धाम लौट गए, तब पांडवो का मन भी इतने हिंसा के बाद धरती पर भी लग रहा था, और उन्होंने सब कुछ त्याग मोक्ष यात्रा पर जाने का निर्णय लिया, और धर्मराज युदिष्ठिर ने अपना पूरा राजपाठ परित्याग कर अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पौत्र परीक्षित को सौंप दिया, जिसमे उन्होंने परीक्षित को सर्व अधिकारों के साथ साम्राज्य घोषित कर दिया, और अन्य पांडवो द्रोपदी समेत महाप्रयाण हेतु हिमालय की ओर निकल गए। अब धरती पर राजा परीक्षित का राज था जो भगवान कृष्ण, माता लक्ष्मी, भीष्म और विदुर जैसे विद्वानों के अभाव में अच्छे से राज पाठ चलाने का प्रयास कर रहे थे।
कलयुग और राजा परीक्षित की कहानी।
कहा जाता है की पड़ावों और द्रोपदी जब हिमालय की मोक्ष यात्रा पर चले गए। तब एक दिन स्वयं धर्मबेल का रूप में धर्म और गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी सरस्वती नदी के किनारे एक एक चोर पर बैठे वार्तालाप कर रहे थे। गाय के रूप में बैठी पृथ्वी के नयन आंसुओ से भरे हुए थे, उनकी आंखो से लगातार अश्रु बहे जा रहे थे, पृथ्वी को दुखी देख धर्म रूपी बैल ने उसने उनकी परेशानी का कारण पूछा, धर्म ने कहा देवी कही तुम ये देखकर तो नही घबरा गई की मेरा बस एक ही पैर है, या फिर तुम इस बात से दुखी हो की अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा। इस सवाल का जवाब देते हुए पृथ्वी देवी बोली, है धर्म तुम तो सबकुछ जानते हो इसमें मुझसे मेरे दुखों का कारण पूछने से क्या लाभ।
ससत्य, मित्रता, लाभ, दया, त्याग, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्यकर्ता, कोमलता, धैर्य, आदि के स्वामी भगवान श्री कृष्ण के अपने धाम चले जाने की वजह से कलयुग ने मुझपर कब्जा कर लिया, श्री कृष्ण के चरण कमल मुझपर पढ़ते थे जिसकी वजह से में खुद को सौभाग्य शाली मानती थी, परंतु अब ऐसा नहीं है, अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो चुका है, धर्म और पृथ्वी आपस में बाते कर हो रहे थे इतने में असुर रूपी कलयुग वहा आ पहुंचा और धर्म, पृथ्वी रूपी गाय और बैल को मरने लगा उसी समय राजा परीक्षित उसी मार्ग से गुज़र रहे थे, जब उन्होंने अपनी आंखों से यह दृश्य देखा तो वो कलयुग पर बोहोत क्रोधित हुए, राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा दुष्ट पापी तू कौन है और क्यू इस निरपराध गाय और बैल को मार रहा है तू महा अपराधी है, तेरा अपराध क्षमा योग्य भी नही, इसलिए तेरी मौत निश्चित है।
इतना कहते हुए राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलयुग को मरने के लिए आगे बढ़े, राजा परिक्षत का क्रोध देखकर कलयुग थर थर कांपने लगा, भयभीत कलयुग अपनी राजती वेश भूषा को उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा,राजा परीक्षित ने भी अपने चरण में आए कलयुग को अपनी जीवन की भीख मांगता देख उसे मरना उचित नही समझा और उसे चेतावनी देते हुए कहा की कलयुग तू मेरी शरण में आ गया है इसलिए मै तुझे जीवन दान दे रहा हूं। किंतु अधर्म, पाप, चोरी, दरिद्र, कपट और आदि अनेक द्रावो को अमूल कारण केवल तू ही है, तू मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौट कर नही आना। कलयुग ने राजा परीक्षित की बात सुनकर बड़ी ही चतुराई से कहा की पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है, पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं है जहा आप राज नही हो, इसे में मुझ जैसे तुच्छ को पृथ्वी पर रहने के लिए आप स्थान प्रदान कीजिए। कलयुग के ये कहने पर राजा परिक्ष्त ने काफी सोच विचार कर कहा असत्य, काम, और क्रूर का निवास जहा भी होता है उन स्थानों पर तुम रह सकते हो, परंतु इसपर कलयुग बोला हे राजन ये स्थान मेरे रहने के लिए अपर्याप्त है, मुझे अन्य जगह भी प्रदान कीजिए, कलयुग की ये मांग सुन राजा परीक्षित ने विचार कर कलयुग को रहने के लिए स्वर्ण के रूप में रहने के लिए अगला स्थान प्रदान किया। कलयुग ने स्थानों के मिल जाने पर प्रत्यक्ष रूप में तो वहा से चला गया, किंतु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में वास करने लगा और फिर इसी तरह से कलयुग का आगमन धरती पर हुआ।
क्या होगा कलयुग में ?
मारकंडे पुराण में वर्णन मिलता है, की कलयुग के शासक मनचाहे ढंग से जनता पर राज करेंगे, मनचाहे ढंग से उनसे लगान वसूल करेंगे, शासक अपने राज्य में धर्म की जगह दर और भय का प्रचार करेंगे, पड़ी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा, लोग सस्ती चीजों की तलाश में घरों को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हो जाएंगे, धर्म को नजर अंदाज किया जाएगा और लालच झूठ और कपट सब के दिमाग के ऊपर हावी रहेगा, लोग बिना किसी पश्वयता के हत्यारा बन कर लोगो की हत्या भी करेंगे, संभोग ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत बन जायेगी, लोग बोहोत जल्दी कसमें खाएंगे और उसे तोड़ भी देंगे, लोग मदिरा और अन्य नशीली चीजों की चपेट में आ जाएंगे, गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा भी समाप्त हो जायेगी, ब्राम्हण ज्ञानी नही रहेंगे, शत्रुओं का साहस खत्म हो जाएगा, और वैश्य अपने व्यापार में ईमानदार नही रहेगा।
कलयुग है जिम्मेदार ?
जीवन में अनुभव कर रहे बुरी स्तिथि के लिए कोसे जाने वाल ये कलयुग किन कारणों की वजह से मनुष्य के किए हर एक कुकृत्य के लिए जिमेदार ठहराया जाता है, इसके पीछे का क्या कारण है की इसकी वजह से किसी व्यक्ति की आपसी द्वेष के कारण हत्या कर दी गई हो, किसी नवालिक कन्या के साथ दुष्कर्म हुआ हो, अपने ही पुत्र में माता पिता को घर से निकल दिया हो, या धन के लोभ में पत्नी ने पति की हत्या कर दी हो, या धन प्राप्ति की लालसा मनुष्य को अपने ही प्रिय को मारने पर विवश करते और किसी भले पुरुष कि की गई भलाई भारी पड़ जाए तो इसे में उस दोषी से ज्यादा कलयुग को ये कहकर दोषी ठहराया जाता है कि ऐसा न होना तो निश्चित था, हर एक कुकृति के लिए भी कलयुग ही जिम्मेदार है।
युग चक्र क्या होता है।
मित्रो आपने शास्त्रों और पुराणों में युग चक्र के बारे में सुना ही होगा, एक युग लाखो वर्षो का होता है जो एक चक्र के समान गतिवान है, जिसके फल स्वरूप एक युग के समय कल समाप्त होने के पश्चात एक निश्चित समय अंतराल के क्रमानुसार दूसरे युग का प्रारंभ होना निश्चित है। साथ ही आपको ये भी बता दे की पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग लगभग 70 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेता युग लगभग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग लगभग 8 लाख चौसठ हजार वर्ष, और कलयुग लगभग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। कल गणना के अनुसार 4 युगों की अवधारना में सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग के बाद चौथा और सबसे अंतिम युग कलयुग ही है।
कलयुग का मतलब क्या है ?
कलुग का अर्थ है कली की आयु, अंधकार का युग, उप दुख की उम्र या पाखंड के झगड़े होता है, कलयुग के इस अर्थ को आप सब वर्तमान में चल रही भयावय स्तिथि से जोड़ पा रहे होंगे।
कैसे होगा कलयुग का अंत ?
वैसे अगर प्राचीन पुराणों को उठाकर देखा जाए तो उसने संसार के अंत को लेकर कई बाते बताई गई है। गीता में भी भगवान विष्णु ने कलयुग के आरंभ होने और इस संसार के अंत के बारे में कई बाते बताई है, ऐसा बताया जाता है की भगवान शिव ने विष्णु जी को इस संसार की जिमेदारी सौंपी थी और भगवान विष्णु ने ही गीता के कुछ बागी में कलयुग के आरंभ और अंत के बारे में बताया है, और जिसके अनुसार इस संसार के अंत के पीछे का कारण एक महिला को बताया है, और कलयुग के आरंभ में कुछ संकेत देते हुए कृत्यों का वर्णन किया है, जो आपको कलयुग का संकेत देता है, गीता में वर्णन के अनुसार जब एक स्त्री अपने श्रृंगार रूपी बाल काटने लगेगी, जिस दिन एक बेटा अपने पिता पर हाथ उठा देगा, जब चारो ओर सिर्फ असत्य का बोल बाला होगा और सत्य का कोई महत्व नहीं रह जाएगा, जब स्रिया अपने घर में ही सुरक्षित महसूस नही करेंगी, लोगो के अंदर से भय खत्म हो जाएगा और उनकी अकाल मृत्यु होना आरंभ हो जायेगी जो की बोहोत कष्टदाई होगी। गीता कथित भगवान विष्णु के अनुसार, तब समझ ले अकाल रूपी कलयुग आपके दरवाजे पर खड़ा है। आप भी ये सोच रहे होंगे की ये सभी संकेत तो हमारी वर्तमान स्तिथि को कही न कही शब्दो के रूप में बयां कर रहे है, तो मित्रो प्रतीक्षा कीजिए इसका और भी विकराल रूप अभी आना बाकी है।
कलयुग कितना बाकी है ?
क्या हम सबने कभी इस बात पर ध्यान दिया है की ऐसे क्या कारण होंगे जिसके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा।
महान कृतज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक आर्यभटियम में इस बात का उल्लेख किया है की जब वे 23 वर्ष के थे तब कलयुग का 3 हजार 600 वर्ष चल रहा था, आंकड़ों के अनुसार आर्यभट का जन्म 476 ईसा पूर्व में हुआ था, मध्यकाल के भाती ज्योतिषो ने माना है की कलयुग एवं कल्प के प्रारंभ में सभी ग्रह सूर्य एवं चंद्र को मिलाकर चैत और शुक्ल प्रतिपदा को रविवार के सूर्योदय के समय एक साथ एकत्र थे, अधिकतर विद्वानों के अनुसार कलयुग का प्रारंभ 3 हजार 102 ईसा पूर्व हुआ था, इस मान से कलयुग का काल 4 लाख 30 हजार साल लंबा चलेगा , अभी कलयुग का प्रथम चरण ही चल रहा है, कलयुग का प्रारंभ 3 हजार 102 ईसा पूर्व हुआ था जब पांच ग्रह मंगल, बुध, शुक्र, ब्रस्पति, और शनि में राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे, गणना की जाए तो 5 हजार 122 वर्ष कलयुग के बीत चुके है, और 4 लाख 26 हजार 882 वर्ष अभी बाकी है।
कितनी है कलयुग की आयु ?
श्रीमद भगवद पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार शुक्र देव जी राजा परीक्षित को कलयुग के संदर्भ में चर्चा करते हुए बताते है की जिस समय सप्तर्षि मगानत्र में विचरण कर रहे थे तब कलीकाल का प्रारंभ हो गया था, कलयुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से 1200 वर्ष की अर्थात मनुष्य की गणना अनुसार 4 लाख 32 हजार वर्ष की है। यदि इन चारो कालो में अंतर करने में आपको कोई कठिनाई हो रही हो तो इसका विस्तार करते हुए हम आपको बता दे–
किस युग में कैसे दिखेंगे लोग ?
1. सतयुग– सतयुग में मनुष्य की लंबाई 32 फिट अर्थात 21 हाथ बताई गई है, इस युग में पाप की मात्रा 0% और पुण्य की मात्रा 100 फीसदी होती है।
2. त्रेतायुग– त्रेतायुग में मनुष्य की लंबाई 21 फिट अर्थात लगभग 14 हाथ बताई गई है, इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% होती है।
3. द्वापरयुग– द्वापरयुग में मनुष्य की लंबाई 11 फिट अर्थात लगभग 7 हाथ बताई गई है, इस युग में पाप की मात्रा 50% और पुण्य की मात्रा 50% होती है।
4. कलयुग– कलयुग में मनुष्य की लंबाई 5 फिट 5 इंच अर्थात लगभग साढ़े 3 हाथ बताई गई है, इस युग में धर्म का सिर्फ एक चौथाई भाग ही रह जाता है और इस युग में पाप की मात्रा 75% जबकि पुण्य की मात्रा 25% होती है।
अंतिम सार।
मित्रो इसी के साथ पोस्ट को समाप्त करते हैं, यदि आपको हमारी ये आज की पोस्ट अच्छी लगी हो तो कमेंट करे और पेज को सब्सक्राइब जरूर करें।
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